Thursday, November 1, 2012
कुछ रिश्ते भी अजीब होते हैं...
कुछ रिश्ते भी अजीब होते हैं
मीलों दूर लगती हैं नज़दीकियाँ
और फासले क़रीब होते हैं.
मंसूबों में आ जाती है उनके
प्यार के फौलाद की ताक़त
जिनके दिल मरीज़ होते हैं.
दिल अपने ही जिस्म में
मेहमाँ बनकर रह जाता है
सुर्ख़ डोरे जब आँखों में शरीक होते हैं.
सौ बरस भी मानो
चंद पल बनकर रह जाते हैं
तो कभी लम्हे अरसों में तब्दील होते हैं.
कभी उजली धूप के साए में
शर्माती छिटकती है चांदनी
तो कभी बेशर्म तारे सूरज के मुरीद होते हैं.
अब तो उनकी मोहब्बत से
यूँ तर-ब-तर है ज़िन्दगी
हम तो प्यासे ही जश्नों में शरीक़ होते हैं.
ये चोर है कैसा कमबख्त
जिसका आदतन इंतेज़ार करते हैं
क्या इतने प्यारे भी रकीब होते हैं?
पल पल हरपल बेहतर
लगती है अब ज़िन्दगी
जब जब आप हमारे क़रीब होते हैं.
ये रिश्ते भी अजीब होते हैं
जिनसे जुड़े हमारे नसीब होते हैं....
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