इक दोस्त है कच्चा - पक्का सा, इक झूठ है आधा सच्चा सा,
जज़्बात को ढंके इक पर्दा, बस एक बहाना अच्छा सा.
जीवन का इक ऐसा साथी है, जो दूर ना होके पास नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
भोर की लाली में मिला था जो, दिन ढलते ही सिमट गया,
इक ओस सरीखा नन्हा कण, शाखों से निकल जो फिसल गया.
क्या पता अब कब कहाँ मिले, इक सोच है बस कोई आस नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
सपनों में लिपटी एक हकीक़त, सच या ख्वाब था पता नहीं,
भँवरे सी फितरत थी शायद, किसी एक कली पर टिका नहीं.
क्यूँ खर्च करूँ उसपे अपनी यादें, इक ठूँठ था वो पलाश नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
बुझती लौ का कुछ बचा धुंआ, इक उतरन फटी पुरानी सी,
कोई साँस नहीं, कोई पास नहीं, इक हवेली है वीरानी सी.
बिसरी सी सरगम बतलाना, है शगुन का कोई साज़ नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
किसी मोड़ पे टकरा जाओ गर, बस अनदेखा कर जाना तुम,
समझ मुझे इक बंजर याद, मत सींच मुझे उकसाना तुम.
बिन पते की चिट्ठी बतलाना, जिसकी है किसी को बाट नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.
Good Good !! :)
ReplyDeleteThanks bhaiya :)
Deletei love this one
ReplyDeleteand I love you :)
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