Monday, October 29, 2012

उजाला तब भी होगा, जो रौशन ये रात होगी

ख़ामोश है ख़ामोशी, कुछ तो बात होगी.....
कुछ ज़्यादा ही काली है घटा, शायद बरसात होगी.

सवेरे का इंतज़ार करने की फितरत नहीं अपनी...
उजाला तब भी होगा, जो रौशन ये रात होगी.

सुर्ख़ हैं निग़ाहें, ज़रूरी नहीं के आंसू बहे हों...
मेहनत की तपिश है ये, लहू के साथ होगी.

करवटें बदलने में गुज़री हैं कितनी रातें....
यार नहीं यारों, कारोबार की करामात होगी.

अलग नहीं मैं, तुम दुनिया में सुकूं ढूंढते हो...
काम को जाम बना के तो देखो,रोज़ मैख़ाने में मुलाक़ात होगी.

जब रात - दिन, कुर्सी - बिस्तर और कर्म - पूजा बन जाए...
रोक पाने की तुझमे बस ख़ुदा की औक़ात होगी.

उजाला तब भी होगा, जो रौशन ये रात होगी....

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