Monday, November 5, 2012

दस्तख़त


ना आग हूँ ना राख हूँ
न कोई अनदेखा सा ख़्वाब हूँ
ना ज़मीं हूँ ना फलक हूँ
बस एक अनसुनी आवाज़ हूँ
ज़रा ठहरो समझो मुझे
इक अनसुलझा सा राज़ हूँ
पर जो भी मिला है उसने कहा है
यारों मैं लाजवाब हूँ .

बरसात की वो रात

वो रात थी कुछ नम सी,
आसमाँ भी रोने को मजबूर था.
खुला था मेरे दिल का दरवाज़ा,
आहटों से उसकी बस कुछ कदम दूर था.
कुछ छीटें कभी खिड़की के रस्ते,
मेरे चेहरे को छू जाते दफातन.
जाने कब ये पहर बीत गया,
यादों में उसकी कुछ ऐसा मशगूल था .
वो ना आया पर उसकी राह तकते,
बदन पर हो गए कितने निशाँ .
डंक थे या थे उसकी तीखी नज़र,
सीने में कुछ चुभा ज़रूर था.
पहरों के पहरे भी अब मद्धम हो चले थे,
वो कातिल मेरा अँधेरे में काफूर था.
बस बची थी इक लाश, कुछ लहू के छीटें ,
और सहमा दिल अन्दर..
जो जीने को मजबूर था.

Sunday, November 4, 2012

शाम की क्या बात करें

दिन ही स्याह है, शाम की क्या बात करें,
इस जश्न का ज़ोर मातम में क्यूँ बर्बाद करें.

खुद पे शर्म करने की भी आदत अब तो जाती रही,
ग़ैरों की बेशर्मी पर हम कैसे ऐतराज़ करें.

बस इक शर्त, इक वादा, इक ज़िद थी ज़िन्दगी,
चाहा एक की ख़ातिर ही सुरों को आज़ाद करें.

वो था बहता पानी और मैं ज़र्रा रेत का
मिलते तो बंधता घरोंदा, इरादा तो नेक था
ना वो रुका, ना मैं झुका
खुश्क आँखों में अब क्या ख्वाहिश-ए-आब करें

ग़ैरों की हंसी अब चुभ सी जाती है
धीमा है ज़हर बस मौत का इंतेज़ार करें.

सालों से सींचा था जिसे, मिल के बसाया था
उस बंजर बग़ीचे में क्या बसंत की बाट करें

झोली में कुछ खुशनुमा यादें , हैं दोनों के बदन पर छाले,
इन यादों के बोझ को कन्धों पे कैसे बर्दाश्त करें

दिन ही स्याह है, शाम की क्या बात करें....

Thursday, November 1, 2012

कुछ रिश्ते भी अजीब होते हैं...


कुछ रिश्ते भी अजीब होते हैं
मीलों दूर लगती हैं नज़दीकियाँ
और फासले क़रीब होते हैं.

मंसूबों में आ जाती है उनके
प्यार के फौलाद की ताक़त
जिनके दिल मरीज़ होते हैं.

दिल अपने ही जिस्म में
मेहमाँ बनकर रह जाता है
सुर्ख़ डोरे जब आँखों में शरीक होते हैं.

सौ बरस भी मानो 
चंद पल बनकर रह जाते हैं
तो कभी लम्हे अरसों में तब्दील होते हैं.

कभी उजली धूप के साए में 
शर्माती छिटकती है चांदनी
तो कभी बेशर्म तारे सूरज के मुरीद होते हैं.

अब तो उनकी मोहब्बत से 
यूँ तर-ब-तर है ज़िन्दगी
हम तो प्यासे ही जश्नों में शरीक़ होते हैं.

ये चोर है कैसा कमबख्त
जिसका आदतन इंतेज़ार करते हैं
क्या इतने प्यारे भी रकीब होते हैं?

पल पल हरपल बेहतर 
लगती है अब ज़िन्दगी
जब जब आप हमारे क़रीब होते हैं.

ये रिश्ते भी अजीब होते हैं 
जिनसे जुड़े हमारे नसीब होते हैं....

Monday, October 29, 2012

चंद लम्हों की बेईमानी

कभी कहने - सुनने में गुज़रे कुछ पल,
तो कभी थमे कहा - सुनी में.
कुछ थे बीते कुछ सुनने की तड़प में,
कुछ आँखों से फिसले अनकही - अनसुनी में.

कुछ पल थे बोझिल, मसरूफ़ कुछ थे,
लापता हुए थे कुछ अनमनी में.
कुछ का थामा दामन, कुछ आदतन छूटे,
ढेरों थे अगवा वक़्त की गुमशुदगी में.

कभी फुर्सत में बैठें चल, करें हिसाब,
हैं कितने संजोये, कितने हैं गुमनामी में.
शायद हम अब तक बस आधा जिए हैं,
आधे नमक बन घुले हैं पानी में.

आ लूटें वो पलछिन वक़्त के दामन से,
और पिरो लें वापिस अपनी कहानी में.
ईमानदार अर्से जीने में वो लुत्फ़ कहाँ?
जो मज़ा है चंद लम्हों की बेईमानी में.

चेहरा

शर्म से पर्दा, बेशर्मी फितरत है मेरी,
गुनाहों के घर में क़ैद मासूमियत है मेरी.
हूँ कभी चोर कभी केसरिया है चोला,
भेस बदलते रहना आदत है मेरी.
ख़ुद का आशियाँ रचने का दम कहाँ?
कोयल से मिलती सूरत है मेरी.

खोज....


उजले बादलों में कुछ अक्स ढूंढता हूँ,
खुद को बयाँ कर दे  वो लफ्ज़ ढूंढता हूँ.
मंजिलें हैं लापता, गुमनाम हैं रस्ते,
आइना जिसे पहचाने वो शख्स ढूंढता हूँ.

कभी भीड़ का चेहरा हूँ , कभी एक हूँ लाखों में
कोई बूँद समंदर की , एक अश्क हूँ आँखों में.
मुझको समझने में , अब और ना तुम उलझो,
हर रोज़ पता घर का कमबख्त ढूंढता हूँ.

तुम ख़ुद को कर के क़ाबू , ख़ुदा को हो पा लेते,
कभी नशे में लथपथ , दोज़ख में हो जलते
मुझपर ना कोई नेमत , क़यामत का ही असर है,
हर पल जन्नत - ए - दोज़ख के बीच झूलता हूँ .

जैसे उम्र की चाहत है , आहों को असर होने को ,
हीना सी है फितरत , डरती है तर होने को
दूर सही , कुछ देर सही , साज़ नहीं आवाज़ सही ,
थमती धडकनों का शोर ज़रा ग़ौर  से सुनता हूँ.

आइना जिसे पहचाने वो शख्स ढूंढता हूँ.....

उजाला तब भी होगा, जो रौशन ये रात होगी

ख़ामोश है ख़ामोशी, कुछ तो बात होगी.....
कुछ ज़्यादा ही काली है घटा, शायद बरसात होगी.

सवेरे का इंतज़ार करने की फितरत नहीं अपनी...
उजाला तब भी होगा, जो रौशन ये रात होगी.

सुर्ख़ हैं निग़ाहें, ज़रूरी नहीं के आंसू बहे हों...
मेहनत की तपिश है ये, लहू के साथ होगी.

करवटें बदलने में गुज़री हैं कितनी रातें....
यार नहीं यारों, कारोबार की करामात होगी.

अलग नहीं मैं, तुम दुनिया में सुकूं ढूंढते हो...
काम को जाम बना के तो देखो,रोज़ मैख़ाने में मुलाक़ात होगी.

जब रात - दिन, कुर्सी - बिस्तर और कर्म - पूजा बन जाए...
रोक पाने की तुझमे बस ख़ुदा की औक़ात होगी.

उजाला तब भी होगा, जो रौशन ये रात होगी....

Sunday, October 28, 2012

My [true] Love Story...

सबसे पहली बार हुआ जब.. था fourth क्लास में यार.
उम्र थी मेरी कुछ कच्ची, पर मुझे हुआ था प्यार.

मुझे हुआ था प्यार पड़ा कुछ ऐसा दौरा !!
दीवारें उसके नाम से भर दीं , furniture  गंदा कर छोड़ा.

थी चार दिन की ये चांदनी, फिर आई अँधेरी रात,
पल में उतरा प्रेम भूत जब मम्मी ने जमाई लात !!

बोली मम्मी बेटा पढ़ ले, अभी उम्र नहीं है प्यार की..
अक्ल ठिकाने आई?? या ज़रूरत है इक और वार की?

फिर हुआ मेरा admission इन Allahabad सेकेंडरी स्कूल..
बेईमान दिल ने होश गंवाए फिर खिले प्यार के फूल !!

फिर खिले प्यार के फूल भाग्य ने क्या खेल  दिखाया,
बोर्ड में चाहे थे 90 % सिर्फ 75 ला पाया!!

सोचा मार्क्स तो मिथ्या हैं, यहीं रह जाएंगे...
गर्ल फ्रेंड को खुश रख बच्चू, exams तो और भी आएँगे!!

पर हे मेरे प्रभु!! कैसा तेरा इन्साफ??
गर्ल फ्रेंड छूटी  Allahabad में दिल्ली आ गए आप.

Delhi University में लिया एडमिशन  A.N.D  College में आया,
सोहनी कुडियां देख LOVE BUG फिर कुलबुलाया!!

पर शायद दिल्ली में, दाल ज़रा देर से पकती है,
Graduation  हो गया पूरा.. आज तक आँखे राह तकती हैं.

इस प्यार व्यार के चक्कर में, है गिरा education टेम्पो,
बस इक और मिल जाए, ज्यादा आशा नहीं हमको!!

यही सोच कर हमने, कुर्सी की पेटी बाँधी,
N . L . Dalmia उड़ा ले गयी हमें CET की आंधी  .

धूल झाड उठ खड़े हुए हम, मन ही  मन मुस्काए
जन्नत में है हुई लैंडिंग !! चारों ओर अप्सराएं !!

अब देखें हमारी किस्मत आगे क्या क्या ग़ुल खिलाती है,
MBA पूरा कर पाऊंगा या फिर से मजनू बनाती है.
................................................................................( to be continued.. always!!)

कोई ख़ास नहीं...



 कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.

इक दोस्त है कच्चा - पक्का सा, इक झूठ है आधा सच्चा सा,
जज़्बात को ढंके इक पर्दा, बस एक बहाना अच्छा सा.

जीवन का इक ऐसा साथी है, जो दूर ना होके पास नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.

भोर की लाली में मिला था जो, दिन ढलते ही सिमट गया,
इक ओस सरीखा नन्हा कण, शाखों से निकल जो फिसल गया.

क्या पता अब कब कहाँ मिले, इक सोच है बस कोई आस नहीं.
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.

सपनों में लिपटी एक हकीक़त, सच या ख्वाब था पता नहीं,
भँवरे सी फितरत थी शायद, किसी एक कली पर टिका नहीं.

क्यूँ खर्च करूँ उसपे अपनी यादें, इक ठूँठ था वो पलाश नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.

बुझती लौ का कुछ बचा धुंआ, इक उतरन फटी पुरानी सी,
कोई साँस नहीं, कोई पास नहीं, इक हवेली है वीरानी सी.

बिसरी सी सरगम बतलाना, है शगुन का कोई साज़ नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.

किसी मोड़ पे टकरा जाओ गर, बस अनदेखा कर जाना तुम,
समझ मुझे इक बंजर याद, मत सींच मुझे उकसाना तुम.

बिन पते की चिट्ठी बतलाना, जिसकी है किसी को बाट नहीं,
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.


कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.