Monday, October 29, 2012

खोज....


उजले बादलों में कुछ अक्स ढूंढता हूँ,
खुद को बयाँ कर दे  वो लफ्ज़ ढूंढता हूँ.
मंजिलें हैं लापता, गुमनाम हैं रस्ते,
आइना जिसे पहचाने वो शख्स ढूंढता हूँ.

कभी भीड़ का चेहरा हूँ , कभी एक हूँ लाखों में
कोई बूँद समंदर की , एक अश्क हूँ आँखों में.
मुझको समझने में , अब और ना तुम उलझो,
हर रोज़ पता घर का कमबख्त ढूंढता हूँ.

तुम ख़ुद को कर के क़ाबू , ख़ुदा को हो पा लेते,
कभी नशे में लथपथ , दोज़ख में हो जलते
मुझपर ना कोई नेमत , क़यामत का ही असर है,
हर पल जन्नत - ए - दोज़ख के बीच झूलता हूँ .

जैसे उम्र की चाहत है , आहों को असर होने को ,
हीना सी है फितरत , डरती है तर होने को
दूर सही , कुछ देर सही , साज़ नहीं आवाज़ सही ,
थमती धडकनों का शोर ज़रा ग़ौर  से सुनता हूँ.

आइना जिसे पहचाने वो शख्स ढूंढता हूँ.....

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