Tuesday, February 5, 2013

आइना जिसे पहचाने


उजले बादलों में कुछ अक्स ढूँढता हूँ
ख़ुद को बयान कर दे, वो लफ्ज ढूँढता हूँ |

मंज़िलें लापता, गुमनाम हैं रस्ते
आइना जिसे पहचाने वो शख्स ढूँढता हूँ |

क्भी भीड़ का चेहरा हूँ, कभी एक हूँ लाखों में
कोई बूँद समंदर की, इक अश्क हूँ आंखों में |

मुझको समझने में अब और ना तुम उलझो
हर रोज़ पता घर का, कमबख़्त ढूँढता हूँ |

तुम ख़ुदी को कर के काबू ख़ुदा को हो पा लेते
या फिर नशे में लथपथ दोज़ख में हो जलते |

मुझपर ना कोई नेमत कयामत का ही असर है
हरदम जन्नत-ए-दोज़ख के बीच झूलता हूँ |

जैसे उम्र कि चाहत है, आहो को असर होने को
हिना सी है फितरत, डरती है तर होने को,

साज़ नहीं आवाज़ सही पर
थमती धड़कनों का शोर जरा ग़ौर से सुनता हूँ |

आइना जिसे पहचाने वो शख्स ढूँढता हूँ |

2 comments: